भोज प्रथम

भोज प्रथम  


भोज प्रथम
 अथवा 'मिहिरभोज' गुर्जर प्रतिहार वंश का सर्वाधिक प्रतापी एवं महान् शासक था। उसने पचास वर्ष(850 से 900 ई.) पर्यन्त शासन किया। उसका मूल नाम 'मिहिर' था और 'भोज' कुल नाम अथवा उपनाम था। उसका राज्य उत्तर में हिमालय, दक्षिण में नर्मदा, पूर्व में बंगाल और पश्चिम में सतलुज तक विस्तृत था, जिसे सही अर्थों में साम्राज्य कहा जा सकता है। भोज प्रथम विशेष रूप से भगवान विष्णु के वराह अवतार का उपासक था, अत: उसने अपने सिक्कों पर आदि-वराह को उत्कीर्ण कराया था।[1
]

प्रारम्भिक संघर्ष

भोज प्रथम ने 836 ई. के लगभग कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया, जो आगामी सौ वर्षो तक प्रतिहारों की राजधानी बनी रही। उसने जब पूर्व दिशा की ओर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहा, तो उसे बंगाल के पालशासक धर्मपाल से पराजित होना पड़ा। 842 से 860 ई. के बीच उसे राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने भी पराजित किया। पाल वंश के शासक देवपाल की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी नारायण को भोज प्रथम ने परास्त कर पाल राज्य के एक बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया। उसका साम्राज्य काठियावाड़पंजाबमालवा तथा मध्य देश तक फैला था।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1.  भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 342 |

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